आख़िर ऐसा क्या है कि एक शांत, लो-प्रोफाइल अभिनेता अचानक सोशल मीडिया की हर रील, हर मीम और हर चर्चा का केंद्र बन गया है? क्यों 2025 के दिसंबर में अक्षय खन्ना का नाम ट्रेंड कर रहा है और क्यों लोग बार-बार एक ही गाने, एक ही एंट्री और एक ही चेहरे पर अटक जा रहे हैं? दरअसल, इसकी जड़ में है फिल्म “धुरंधर” और उसमें अक्षय खन्ना द्वारा निभाया गया किरदार Rehman Dakait। यह कोई साधारण नेगेटिव रोल नहीं, बल्कि Karachi के Lyari इलाके से उभरे एक बेहद खौफनाक और प्रभावशाली गैंगस्टर का सिनेमाई चित्रण है। फिल्म में Rehman Dakait का कैरेक्टर कम संवादों, ठंडी निगाहों और सटीक बॉडी लैंग्वेज के साथ पेश किया गया है, जो आज के दर्शक को ज़्यादा real और unsettling लगता है। यही वजह है कि कई सीन में उनका असर हीरो से भी ज़्यादा भारी पड़ता दिखाई देता है। सोशल मीडिया पर इस किरदार के वायरल होने की सबसे बड़ी वजह बनी उनकी entry sequence, जिसमें इस्तेमाल हुआ गाना “Fa9la”। यह एक Arabic/Khaliji rap track है, जिसके बोल भले ही ज़्यादातर लोग न समझ पाएं, लेकिन उसका rhythm, beat और स्क्रीन पर अक्षय खन्ना का controlled swagger मिलकर एक ऐसा visual पैदा करता है जो reels और memes के लिए परफेक्ट बन गया। Instagram पर हजारों creators इसी ऑडियो पर reels बना रहे हैं, और यही वजह है कि यह ट्रेंड Global Viral charts तक पहुंच गया।
अक्षय खन्ना की इस वापसी को सिर्फ viral trend कहना भी अधूरा होगा। critics और फिल्म इंडस्ट्री के कई नामी चेहरे उनकी परफॉर्मेंस को “scene-stealer” और “award-worthy” बता चुके हैं। खास बात यह है कि यह किरदार न तो over-the-top है और न ही फिल्मी विलेन की तरह चिल्लाता हुआ बल्कि इसकी खामोशी ही इसकी सबसे बड़ी ताक़त है। आज के meme culture और algorithm-driven सोशल मीडिया में यही subtle intensity लोगों को अलग और नया लग रही है। कुल मिलाकर, धुरंधर में Rehman Dakait का किरदार, उसका music-driven introduction, और अक्षय खन्ना की वर्षों बाद दिखाई गई controlled, layered acting इन तीनों ने मिलकर उन्हें एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया है। यह वायरल होना महज़ इत्तेफाक नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि दर्शक आज भी शोर से ज़्यादा असर को पहचानता है, और कभी-कभी एक शांत किरदार भी पूरे इंटरनेट पर गूंज सकता है।
क्या किसी वर्ल्ड फेमस फुटबॉल आइकन का स्वागत इतने mismanagement के साथ होना चाहिए था? क्या यह सिर्फ़ ग़ुस्साए फैन्स का reaction था या फिर एक बड़े इवेंट की गंभीर mismanagement का नतीजा? 13 दिसंबर 2025 को कोलकाता के सॉल्ट लेक स्टेडियम में लियोनेल मेसी के साथ जो हुआ, उसने भारत में मेगा स्पोर्ट्स इवेंट्स की तैयारी पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लियोनेल मेसी का यह दौरा GOAT India Tour 2025 के तहत आयोजित किया गया था, जिसे लेकर देशभर में जबरदस्त hype थी। कोलकाता के Vivekananda Yuva Bharati Krirangan (Salt Lake Stadium) में हज़ारों फैन्स सुबह से ही अपने फुटबॉल हीरो की एक झलक पाने के लिए मौजूद थे। आयोजकों ने बड़े-बड़े दावे किए थे grand celebration, cultural programme, statue unveiling और fan interaction। लेकिन ज़मीन पर हालात बिल्कुल अलग नज़र आए। समस्या की शुरुआत तब हुई जब मेसी की actual appearance duration बेहद सीमित रही। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वे स्टेडियम में केवल 20–22 minutes तक मौजूद रहे और वह भी भारी security cordon, barricades और VIP protocol के बीच। ज़्यादातर दर्शकों को न तो clear visibility मिली और न ही वह experience, जिसकी उम्मीद उन्होंने की थी। कई फैन्स ने ₹8,000 से ₹12,000 तक के high-priced tickets खरीदे थे, लेकिन इसके बावजूद उन्हें लगा कि वे मेसी को ठीक से देख भी नहीं पाए। यहीं से फैन्स में frustration बढ़ने लगा। सबसे बड़ा मुद्दा रहा crowd management failure। इतने बड़े स्टेडियम और भारी भीड़ के बावजूद entry-exit points, seating coordination और movement control में साफ़ तौर पर planning की कमी दिखी। इसके साथ ही communication gap भी सामने आया फैन्स को न तो मेसी की exact timing के बारे में स्पष्ट जानकारी दी गई और न ही यह बताया गया कि उनका interaction कितना सीमित होगा। उम्मीदें बड़ी थीं, लेकिन delivery बेहद छोटी। हालात तब बिगड़ गए जब मेसी के स्टेडियम से निकलते वक्त कुछ फैन्स ने water bottles और अन्य objects फेंकने शुरू कर दिए। यह कोई pre-planned हिंसा नहीं थी, बल्कि एक spontaneous outburst था, जो disappointment और anger से पैदा हुआ। सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत स्थिति को control में लिया और security threat assessment के तहत मेसी को जल्दी बाहर निकाला गया। इसके बाद कार्यक्रम को effectively cut short कर दिया गया। इस घटना ने यह साफ़ कर दिया कि मामला सिर्फ़ fan behaviour का नहीं था, बल्कि event planning, logistics और expectation management की सामूहिक विफलता थी। जब किसी global icon को बुलाया जाता है, तो उसके साथ सिर्फ़ security नहीं, बल्कि fan psychology को भी manage करना पड़ता है। अगर audience को पहले से clear बताया जाता कि यह एक brief ceremonial appearance होगी, तो शायद हालात इतने नहीं बिगड़ते। घटना के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर भी प्रतिक्रियाएँ आईं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से खेद जताया, जो इस बात का संकेत था कि administrative oversight में भी कहीं न कहीं चूक मानी जा रही है। सोशल मीडिया पर इस पूरे इवेंट को लेकर “total scam”, “blink and miss appearance” जैसे शब्द ट्रेंड करने लगे, जिसने आयोजकों की credibility पर सवाल खड़े कर दिए।
साफ़ है13 दिसंबर 2025 को हुआ यह बवाल किसी एक कारण का नतीजा नहीं था। यह over-hype under-delivery, कमजोर crowd control, और खराब communication strategy का मिश्रण था। लियोनेल मेसी जैसे खिलाड़ी का भारत आना एक historic moment हो सकता था, लेकिन अव्यवस्था ने इसे एक विवादित याद में बदल दिया।
13 दिसंबर 2001 की सुबह नई दिल्ली स्थित भारतीय संसद भवन में सामान्य कार्यवाही चल रही थी। उसी दौरान एक Ambassador कार, जिस पर फर्जी Home Ministry stickers और जाली पहचान पत्र लगे थे, संसद परिसर में प्रवेश कर गई। कार में सवार थे पाँच heavily-armed आतंकवादी, जिनके पास AK-47 rifles, pistols, grenades और explosives थे। उनका मकसद साफ़ था भारत की संसद पर कब्ज़ा कर देश की राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था को दहला देना। लगभग सुबह 11:30 बजे आतंकियों ने अचानक फायरिंग शुरू कर दी। संसद परिसर में अफरा-तफरी मच गई। लेकिन इस हमले से पहले कि वे अपने मंसूबों में कामयाब हो पाते, Delhi Police, CRPF और Parliament Security Service ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया। करीब 30 से 40 मिनट तक चली भीषण मुठभेड़ में सभी पाँच आतंकवादी मौके पर ही मार गिराए गए। यह त्वरित कार्रवाई ही वह वजह बनी, जिसने संसद के भीतर मौजूद सांसदों और लोकतांत्रिक ढांचे को बचा लिया। इस हमले में देश को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कुल 14 लोगों की मौत हुई, जिनमें 5 आतंकवादी और 9 भारतीय सुरक्षा कर्मी व नागरिक शामिल थे। शहीदों में दिल्ली पुलिस और CRPF के जवानों के साथ-साथ संसद परिसर में काम करने वाला एक माली भी शामिल था। इसके अलावा लगभग 18 लोग घायल हुए। यह बलिदान इस बात की गवाही है कि सुरक्षा बलों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना लोकतंत्र की रक्षा की। जांच में सामने आया कि इस हमले के तार Pakistan-based terrorist organisations से जुड़े थे। भारतीय एजेंसियों ने Jaish-e-Mohammed और Lashkar-e-Taiba जैसे आतंकी संगठनों की भूमिका बताई। आतंकियों के नाम Hamza, Haider alias Tufail, Rana, Raja और Mohammed जांच दस्तावेज़ों में दर्ज हुए। भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह हमला सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा था, हालांकि पाकिस्तान की ओर से इन आरोपों से इनकार किया गया।
इस एक हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को बेहद तनावपूर्ण मोड़ पर ला खड़ा किया। इसके बाद 2001–2002 military standoff की स्थिति बनी, जिसमें दोनों देशों ने हजारों सैनिक सीमा पर तैनात कर दिए। यह 1971 के बाद का सबसे बड़ा सैन्य जमावड़ा माना गया। दुनिया भर की निगाहें दक्षिण एशिया पर टिक गईं और परमाणु युद्ध तक की आशंकाएँ जताई जाने लगीं।
संसद हमले के बाद भारत ने अपनी national security और counter-terrorism policies में बड़े बदलाव किए। संसद परिसर की सुरक्षा को कई स्तरों पर मजबूत किया गया, access control, surveillance systems और intelligence coordination को नए सिरे से परिभाषित किया गया। यह हमला भारत के लिए एक चेतावनी था कि आतंकवाद सिर्फ़ सीमाओं पर नहीं, बल्कि लोकतंत्र के केंद्र पर भी वार कर सकता है। आज, हर साल 13 दिसंबर को देश उन शहीदों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने संसद को बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। 2001 का संसद हमला याद दिलाता है कि लोकतंत्र सिर्फ़ संविधान से नहीं, बल्कि उन लोगों के साहस से ज़िंदा रहता है जो आख़िरी सांस तक उसकी रक्षा करते हैं। यह घटना इतिहास का एक काला अध्याय है, लेकिन साथ ही यह भारतीय सुरक्षा बलों के अदम्य साहस और कर्तव्यनिष्ठा की अमिट मिसाल भी है।