देश की सबसे बड़ी एयरलाइन IndiGo में शुक्रवार को जो कुछ हुआ, उसने भारतीय उड्डयन इतिहास में एक अभूतपूर्व संकट की तस्वीर खड़ी कर दी। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे प्रमुख हवाई अड्डों पर सुबह से ही अफरातफरी का ऐसा माहौल दिखा, जैसे किसी आपदा के बाद व्यवस्था ढह गई हो। आज अकेले करीब 500 से 600 फ्लाइटें रद्द की गईं, जिनमें केवल दिल्ली एयरपोर्ट से ही 220–250 उड़ानों का सफाया हो गया। देश की विमानन व्यवस्था अचानक बेकाबू क्यों हो गई? इसका जवाब जितना तकनीकी है, उतना ही प्रशासनिक लापरवाही की परतें खोलता है। 1 दिसंबर से लागू हुए DGCA के नए Flight Duty Time Limitations नियमों ने आज की स्थिति को जन्म दिया। नए नियमों में पायलटों और केबिन क्रू के लिए रेस्ट टाइम बढ़ाया गया, रात की उड़ानों की सीमा घटाई गई और लगातार उड़ानों पर कड़ी पाबंदियाँ लगाई गईं। यह सब यात्रियों की सुरक्षा के लिए था लेकिन एयरलाइन के पास इन नए नियमों के लिए आवश्यक स्टाफ बिल्कुल नहीं था। IndiGo पायलटों की उपलब्धता पहले ही तंग थी, लेकिन कंपनी ने इस बदलते नियमों के बीच पर्याप्त भर्ती या ट्रेनिंग नहीं की। नतीजा एक-एक पायलट पर कई उड़ानों का भार, और नए नियमों के लागू होते ही पूरा रोस्टर सिस्टम ढह गया। एयरलाइन के अंदर से आई कुछ रिपोर्टों ने यह तक दावा किया कि “कंपनी ने पहले से चेतावनी मिलने के बावजूद इसे गंभीरता से नहीं लिया,” और यही गलती पूरे संकट में बदल गई।
5 दिसंबर की सुबह होते-होते दिल्ली एयरपोर्ट पर हालात बेकाबू हो चुके थे। सभी टर्मिनलों पर लंबी कतारें, यात्रियों का गुस्सा, ऑपरेशन टीमों में हड़कंप एक फ्लाइट रद्द होने की सूचना मिलते ही अगली तीन फ्लाइटें भी अपने-आप खतरे में आ गईं। दिल्ली के बाद बेंगलुरु, हैदराबाद और मुंबई में स्थिति और खराब दिखी। बेंगलुरु एयरपोर्ट ने बताया कि सिर्फ 4 दिसंबर को ही उनकी 70+ उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। पिछले 4 दिनों में देशभर में लगभग 800 फ्लाइटें रद्द हो चुकी हैं। यात्रियों के लिए ना रीशेड्यूलिंग आसान, ना रिफंड; एयरपोर्ट का कर्मचारी स्टाफ यात्रियों के सवालों के जवाब देने में असमर्थ। एक तरह से, “India’s largest private airline suddenly became India’s largest aviation breakdown.” चार दिन की अराजकता के बाद सरकार और DGCA ने आखिरकार आज दोपहर नए FDTL नियमों पर अंतरिम रोक लगा दी। यानी जो नियम 1 दिसंबर से लागू किए गए थे, उन्हें अब अस्थायी तौर पर हटा दिया गया है। यह कदम एयरलाइन पर बढ़ते दबाव यात्रियों के गुस्से, सोशल मीडिया पर ट्रेंड, और एयरपोर्ट प्रबंधन की चेतावनी के बाद उठाया गया। लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था। एक एयरलाइन को पटरी पर लौटाने में सिर्फ नियमों की छूट काफी नहीं होती; पायलट, क्रू, प्लानिंग और बैक-अप सिस्टम की पुनर्रचना में हफ्तों लग जाते हैं। यही कारण है कि खुद IndiGo ने कहा है ऑपरेशन 10 फरवरी 2026 तक ही पूरी तरह सामान्य हो पाएगा। दिल्ली और उत्तर भारत में कोहरे का सीजन शुरू हो चुका है। इसके कारण लैंडिंग-दूरी, टैक्सी टाइम और क्लियरेंस में पहले से अधिक समय लगता है। इस मौसम में एयरलाइन को अतिरिक्त पायलट, ज्यादा स्टाफ और हाई-कैपेसिटी प्लानिंग की जरूरत होती है। लेकिन IndiGo पहले ही सीमित संसाधनों से चल रही थी। यानी नए नियम + कम स्टाफ + बढ़ी मांग + सर्दी का मौसम यानी राष्ट्रीय स्तर का एयर क्राइसिस।
कई वरिष्ठ पायलटों ने (अंदरूनी पत्रों में) यह बात कही कि कंपनी ने महीनों से पायलटों की कम उपलब्धता पर ध्यान नहीं दिया। DGCA ने भी कहा कि यह कमी नई नहीं थी लेकिन एयरलाइन ने समय रहते कर्मचारी संख्या नहीं बढ़ाई। यानी, यह सिर्फ “नए नियमों” का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही + कम स्टाफ + गलत रोस्टरिंग का संयुक्त परिणाम है। आगे क्या होगा?
आने वाले कुछ दिनों में फ्लाइट की स्थिति धीरे-धीरे सुधरेगी, लेकिन पूरी तरह सामान्य होने में 6–8 हफ्ते लग सकते हैं। यात्रियों को सलाह दी जाएगी कि यात्रा से पहले फ्लाइट स्टेटस जांचें और रद्द होने की स्थिति में वैकल्पिक विकल्प रखें। DGCA एयरलाइन से विस्तृत रिपोर्ट मांगेगा कि इतने बड़े पैमाने पर संकट पैदा कैसे हुआ। संभावना है कि आने वाले महीनों में उड्डयन नियामक क्रू मैनेजमेंट नियमों पर बड़ा सुधार लागू करे। IndiGo का यह संकट सिर्फ आज की एक दुर्घटना नहीं है; यह सिस्टम की वे खामियाँ उजागर करता है जो सालों से ढकी हुई थीं। भारत जैसे उभरते हुए विमानन बाजार में सबसे बड़ी एयरलाइन का इस तरह बिखर जाना एक चेतावनी है कि तकनीकी सुरक्षा नियम लागू करने से पहले एयरलाइन प्रबंधन, मानव संसाधन और आपातकालीन प्लानिंग पर गंभीर काम ज़रूरी है
कभी सोचा है…क्या वजह है कि देश के बाकी महानगर करोड़ों की आबादी के बावजूद उतने प्रदूषित नहीं होते जितना दिल्ली? क्या सचमुच पराली ही असली दोषी है, या हमारे सामने कुछ छुपाया जा रहा है और अगर हर सरकार दावा करती है कि हवा सुधर रही है, तो दिल्ली में सांस लेना हर साल और मुश्किल क्यों होता जा रहा है? आख़िर क्यों इस शहर का समाधान कभी निकलता ही नहीं और आख़िरी बार दिल्ली कब सच में साफ़ हवा वाली दिल्ली थी? आइए जानते है
दिल्ली की हवा सिर्फ इसलिए नहीं जहरीली होती कि यहाँ लोग ज़्यादा हैं। मुंबई, चेन्नई और कोलकाता की आबादी भी कम नहीं। फर्क यहाँ की भूगोल और मौसम से शुरू होता है। भारत के तमाम महानगर समुद्र के पास हैं जहाँ समंदर की तेज़ हवा रोजाना शहर को धुलती है। लेकिन दिल्ली? लैंडलॉक्ड शहर। हवा को न समुद्र मिलता है, न खुली दिशा। ऊपर से उत्तर में हिमालय की दीवार, और आसपास अरावली की टूटी हुई रेंज। नतीजा? जो भी धुआँ या धूल उठता है, दिल्ली उसे निगल लेती है लेकिन बाहर नहीं निकाल पाती। सर्दियों में यही स्थिति और घातक हो जाती है। रात में तापमान गिरता है, ऊपर की हवा गर्म रहती है, नीचे की हवा ठंडी। यह “टेम्परेचर इनवर्ज़न” पूरी दिल्ली के ऊपर एक काँच की चादर बिछा देता है। नीचे का धुआँ ऊपर ही नहीं जा पाता और दिल्ली एक विशाल गैस चेंबर में बदल जाती है। दिल्ली का धुआँ सिर्फ अक्टूबर–नवंबर की घटना नहीं। असली ज़हर साल भर शहर के अंदर ही बनता है दिल्ली–NCR में देश की सबसे अधिक गाड़ियाँ चलती हैं। करोड़ों व्हीकल, जिनमें बड़ी संख्या पुरानी डीज़ल गाड़ियों की है। रिसर्च के मुताबिक दिल्ली के PM2.5 और NO₂ में 20–40% तक ट्रैफिक का योगदान रहता है। हर मोड़ पर जाम, हर चौराहे पर स्टार्ट–स्टॉप हवा थककर वहीं रुक जाती है दिल्ली के चारों ओर गाज़ियाबाद, बवाना, फ़रीदाबाद, बहादुरगढ़, सोनीपत और न जाने कितने इंडस्ट्रियल बेल्ट हैं। इनमें से कई अब भी कोयले, फर्नेस ऑयल और डीज़ल पर चलते हैं। हवा चाहे जिस दिशा से आए धुआँ पहले दिल्ली पर ही गिरता है। ऊपर से बिजली कटते ही हज़ारों DG सेट लगातार ज़हर उगलते रहते हैं। वहीं दिल्ली एक स्थायी निर्माण स्थल की तरह है। कहीं मेट्रो, कहीं फ्लाईओवर, कहीं सड़कों की खुदाई। धूल उड़ती है, चिपकती नहीं। आधुनिक शहर में dust control सबसे बुनियादी जरूरत होती है लेकिन दिल्ली इसे तब याद करती है जब हवा ‘खराब’ घोषित हो जाती है। लोकल बायोमास बर्निंग सर्दियों में झुग्गियों, चाय दुकानों, फुटपाथों पर लकड़ी–कोयला–कचरा जलाना आम है। ये छोटे–छोटे स्त्रोत मिलकर शहर की हवा को स्थायी रूप से खराब करते रहते हैं। हालांकि पराली का धुआँ कुछ हफ्तों के लिए दिल्ली को घुटन में धकेल देता है, कई दिनों में इसका योगदान 20–40% तक पहुंच जाता है। लेकिन साल भर की औसत में इसका हिस्सा बहुत कम है। यानी, अगर पराली कल से 100% बंद हो भी जाए, तब भी दिल्ली साफ नहीं होगी। डेटा झूठ नहीं बोलता क्यों बाकी शहर बच जाते हैं जब दिल्ली का औसत सालाना PM2.5 90+ माइक्रोग्राम/m³ रहता है, वहीं मुंबई: 40–50 कोलकाता: 50–60 , चेन्नई: 30–40 मतलब, दिल्ली कई बार इनसे दोगुना–तीन गुना तक प्रदूषित रहती है। बाकी शहरों को समंदर साफ करता है दिल्ली अपनी हवा खुद के अंदर कैद कर लेती है।
सच यह है कि सरकारें हवा साफ करने की बजाय डेटा को साफ दिखाने में ज़्यादा मेहनत करती हैं। AQI में सुधार दिखता है लेकिन WHO के मुकाबले अब भी कई गुना ज़्यादा सरकार कहती है कि AQI सुधर रहा है। कुछ हद तक सही भी है। लेकिन “सुधरना” और “सुरक्षित होना” दो अलग बातें हैं। Delhi अभी भी WHO की सुरक्षित सीमा से 6–7 गुना ऊपर है। National Clean Air Programme के तहत दिल्ली को करोड़ों मिले लेकिन रिपोर्ट्स कहती हैं कि उनमें से केवल लगभग एक चौथाई ही खर्च हुआ। क्यों? क्योंकि असली समाधान महंगा है, कठिन है, और वोट गंवा सकता है। Centre कहेगी दिल्ली सरकार ज़िम्मेदार। दिल्ली सरकार कहेगी UP–Haryana का धुआँ आता है। Punjab कहेगा MSP सुधारो, हम पराली छोड़ देंगे। और जनता? साल दर साल खाँसती रहती है। तो दिल्ली आख़िरी बार इतनी साफ़ कब थी? सीधा जवाब: 2020 का लॉकडाउन। जब सड़कें खाली थीं, इंडस्ट्री बंद थी, कंस्ट्रक्शन रुका हुआ था — दिल्ली का PM2.5 40–60% तक गिर गया, AQI ‘Good–Satisfactory’ में पहुँच गया। यानी इंसान रुका, तो हवा खुद साफ़ हो गई। इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए कि असली समस्या क्या है? क्या दिल्ली का समाधान कभी निकलेगा? निकलेगा लेकिन सिर्फ तब, जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट गाड़ियों की जगह ले इंडस्ट्रीज़ साफ ईंधन पर जाएँ कंस्ट्रक्शन dust control मजाक नहीं, नियम बने NCR स्टेट्स रीजनल प्लान को politics से ऊपर रखें और जनता खुद अपनी गाड़ी, पटाखों, कचरा जलाने पर ज़िम्मेदार हो, दिल्ली तब ही सुधरेगी, जब हवा को साफ़ करने की लड़ाई चुनाव जीतने से ज्यादा जरूरी लगेगी।
भारतीय क्रिकेट में कुछ दिन ऐसे आते हैं जब पूरा देश टीवी स्क्रीन से चिपक जाता है क्योंकि बल्लेबाज़ केवल रन नहीं बनाता, बल्कि इतिहास लिखता है। आज विशाखापत्तनम में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच होने वाला तीसरा और निर्णायक वनडे भी वैसा ही दिन है। और इस मैच का सबसे बड़ा आकर्षण सिर्फ जीत-हार नहीं, बल्कि एक नाम है विराट कोहली। विराट ने पहले दो मैचों में लगातार दो शतक लगाकर सीरीज को अकेले कंधों पर उठाया है। लेकिन आज दांव कुछ बड़ा है इतना बड़ा कि एक शतक उनकी बैटिंग को नई परिभाषा दे सकता है, आँकड़ों की दुनिया में झंडे गाड़ सकता है, और एक बार फिर दुनिया को बता सकता है कि ‘किंग’ सिर्फ एक उपनाम नहीं, बल्कि एक स्तर है। आज अगर कोहली तीसरा शतक लगा देते हैं, तो वे वनडे क्रिकेट में अपनी दूसरी शतक-हैट्रिक पूरी करेंगे और यह उपलब्धि भारत के किसी भी बल्लेबाज़ ने आज तक दो बार हासिल नहीं की है। यह सिर्फ रन नहीं, बल्कि निरंतरता, मानसिक मजबूती और उस क्लास की गवाही है जिसे कभी भी आउट ऑफ़ फॉर्म नहीं कहा जा सकता। दिलचस्प बात यह है कि यह शतक सिर्फ हैट्रिक को पूरा नहीं करेगा, बल्कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ लगातार चार पारियों में शतक लगाने वाला पहला क्रिकेटर भी बना देगा। दुनिया में कोई भी बल्लेबाज़ अब तक किसी एक ही टीम के खिलाफ चार ODI पारियों में लगातार सेंचुरी नहीं लगा सका। अगर कोहली यह कर जाते हैं, तो यह उपलब्धि उनके नाम एक अनोखा अध्याय जोड़ देगी जिसकी बराबरी शायद आने वाले दशक में भी कठिन होगी। इतिहास के पन्ने आज एक और मोड़ पर खड़े हैं कोहली के कुल ODI शतक पहले ही दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। लेकिन हर नया शतक उनके ‘माउंटेन ऑफ़ माइलस्टोन’ में एक नई ऊँचाई जोड़ देता है। आज का शतक इस आंकड़े को और मजबूत कर देगा और यह दबाव भी कि क्या कोई मौजूदा या आने वाला बल्लेबाज़ इस गति से शतक बना सकता है? सवाल बड़ा है जवाब मुश्किल। क्या होगा आज?
क्या कोहली तीसरी सेंचुरी के साथ नया साम्राज्य रचेंगे? क्या इतिहास उनके बल्ले से एक और अध्याय लिखवाएगा? इन सवालों के जवाब 22 गज की पट्टी पर मिलेंगे लेकिन इतना तय है कि अगर कोहली ने आज शतक जड़ दिया, तो उनके नाम के आगे ‘किंग’ लिखने पर दुनिया को दोबारा सोचने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।
भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन IndiGo का ऑपरेशनल संकट आज पाँचवें दिन भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। DGCA की रिपोर्टिंग और एयरपोर्ट-लेवल डेटा साफ दिखाता है कि शुक्रवार (6 दिसंबर) को भी देशभर में सैकड़ों फ्लाइट्स रद्द या भारी देरी की शिकार रहीं। सबसे बड़े झटके बेंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, जयपुर और कश्मीर सेक्टर में देखने को मिले। अकेले बेंगलुरु एयरपोर्ट पर 124 IndiGo फ्लाइट्स (61 आगमन, 63 प्रस्थान) रद्द हुईं, जबकि जयपुर में 25, और श्रीनगर की सात सेवाएँ ठप रहीं। यानी तस्वीर साफ है राहत की हल्की झलक होने के बावजूद, नॉर्मल ऑपरेशन अभी भी दूर है। यह संकट अचानक नहीं आया। इसकी जड़ें सीधी जा मिलती हैं नए Pilot Fatigue Rules (FDTL) और IndiGo की कमजोर प्लानिंग से। सरकार ने 2025 के नियमों में पायलटों की सेफ़्टी को ध्यान में रखते हुए साप्ताहिक आराम 36 से बढ़ाकर 48 घंटे, रात की लैंडिंग लिमिट केवल 2 per week, नाइट-ड्यूटी की अधिकतम सीमा 10 घंटे, और लीव को rest मानने पर पाबंदी जैसे बदलाव लागू किए थे। उद्देश्य बिल्कुल सही था पायलट थकान कम करना, हादसों की संभावना घटाना। लेकिन IndiGo अपने रोस्टर को इन बदलावों के हिसाब से अपडेट करने में पिछड़ गया। नतीजा यह हुआ कि अचानक बड़ी संख्या में पायलट कानूनी तौर पर उड़ान के लिए उपलब्ध ही नहीं रहे। कंपनी के कई रूट ऐसे थे जिन्हें सिर्फ़ कागज़ पर “पायलट-असाइन” किया गया था, लेकिन वास्तविक नियमों के हिसाब से वह पायलट उड़ ही नहीं सकता था। इस mismatch ने पूरे नेटवर्क को चेन रिएक्शन की तरह ठप कर दिया। इसी का परिणाम कल यानी गुरुवार को सबसे डरावनी तस्वीर के रूप में सामने आया, जब कई रिपोर्ट्स के अनुसार well over 1,000 IndiGo फ्लाइट्स एक ही दिन में रद्द हुईं और दिल्ली एयरपोर्ट ने तो रात तक IndiGo की सभी घरेलू उड़ानें रोक दीं। इसके मुकाबले आज का दिन थोड़ा बेहतर रहा, लेकिन अभी भी 400–500 के बीच कैंसिलेशन डिसरप्शन जारी हैं। यानी, सुधार की रफ्तार अभी बहुत धीमी है। संकट बढ़ने पर सरकार हरकत में आई। नागरिक उड्डयन मंत्रालय और DGCA ने airline को निर्देश दिया कि सभी प्रभावित पैसेंजरों का पूरा रिफंड, शून्य री-शेड्यूलिंग चार्ज, और मिसहैंडल्ड बैगेज की 48 घंटे में डिलीवरी अनिवार्य है। इसके अलावा, किराया बढ़ने की शिकायतों पर सरकार ने एयरफेयर कैप लगाई, ताकि दूसरी कंपनियाँ इस अव्यवस्था का फायदा न उठा सकें। साथ ही, DGCA ने इस पूरे मामले की उच्च-स्तरीय जांच घोषित कर दी है, यह समझने के लिए कि गलती नियमों की व्याख्या में हुई या IndiGo की प्लानिंग में। हालाँकि सरकार ने अस्थायी तौर पर कई नियमों को relaxation दे दिया जैसे नाइट-लैंडिंग की सीमा फिर से बढ़ाना और rest बनाम leave वाले क्लॉज़ को ढील देना लेकिन एयरलाइन यह खुद मान रही है कि पूरी स्थिति को सामान्य होने में कम से कम 7–10 दिन और लगेंगे। कारण साफ है उड़ानों का नेटवर्क और पायलट-रोस्टर हफ्तों पहले से बनते हैं, और उन्हें री-कैलिब्रेट करना तात्कालिक फैसला नहीं होता। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या भारत की सबसे विशाल एयरलाइन अपने ही आकार के बोझ तले दब गई है? क्या FDTL नियमों का मक़सद सही होने के बावजूद उनके लागू होने का टाइमिंग गलत था? या फिर असली वजह यह है कि IndiGo ने सालों से टाइट-स्ट्रेच्ड शेड्यूल पर उड़ान चलाई और अब पहला ही दबाव आते ही सिस्टम ढह गया? जवाब चाहे जो भी निकले, इतना तय है कि हज़ारों यात्री इस समय एयरपोर्ट की कतारों में फँसे हैं, और सबसे विश्वसनीय मानी जाने वाली एयरलाइन अपने सबसे निर्णायक इमेज क्राइसिस से गुजर रही है। आने वाले कुछ दिन तय करेंगे कि IndiGo इस तूफ़ान से उभरकर बाहर आती है या फिर यह संकट भारतीय एविएशन सेक्टर की बड़ी बहस का विषय बनेगा।